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आज निश्चित रूप से! यहां विभिन्न योग मुद्राओं का वर्णन दिया गया है, जिन्हें आसन भी कहा जाता है:

1.आगे की ओर झुककर बैठना (पश्चिमोत्तानासन): पैरों को सामने फैलाकर फर्श पर बैठें। रीढ़ की हड्डी को लंबा करने के लिए श्वास लें, फिर कूल्हों से आगे की ओर मोड़ने के लिए श्वास छोड़ें, पैरों की ओर पहुंचें। रीढ़ की हड्डी लंबी और छाती खुली रखें। लचीलेपन के आधार पर पैरों, टखनों या पिंडलियों को पकड़ें। यह मुद्रा रीढ़, हैमस्ट्रिंग और पीठ के निचले हिस्से में खिंचाव लाती है और मन को शांत करती है।

2.कोबरा आसन (भुजंगासन): पेट के बल लेटकर हथेलियों को कंधों के नीचे रखें। कोहनियों को शरीर के पास रखते हुए, सांस लेते हुए छाती को चटाई से ऊपर उठाएं। पैरों के शीर्ष को फर्श पर दबाएं और पीठ की मांसपेशियों को संलग्न करें। गर्दन को लंबा रखते हुए नजर को थोड़ा ऊपर उठाएं। यह मुद्रा पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करती है, छाती को फैलाती है और मुद्रा में सुधार करती है।

3.त्रिकोण मुद्रा (त्रिकोणासन): पैरों को फैलाकर, आगे की ओर मुंह करके खड़े हो जाएं। एक पैर को बगल की ओर मोड़ें और भुजाओं को फर्श के समानांतर फैलाएँ। धड़ को लंबा और रीढ़ को सीधा रखते हुए विस्तारित पैर की ओर पहुंचें। हाथ को पिंडली, टखने या फर्श पर टिकाएं और विपरीत हाथ को छत की ओर बढ़ाएं। टकटकी को ऊपर या आगे की ओर निर्देशित रखें। यह मुद्रा हैमस्ट्रिंग, कूल्हों और पार्श्व शरीर को फैलाती है, और संतुलन और स्थिरता में सुधार करती है।

4.प्लैंक पोज़ (फलकासन): पुश-अप स्थिति में हाथों को कंधों के नीचे और पैरों को पीछे की ओर फैलाकर, पंजों को नीचे की ओर करके शुरू करें। कोर को संलग्न करें और शरीर को सिर से एड़ी तक एक सीधी रेखा में रखें। गहरी सांस लेते हुए और स्थिरता बनाए रखते हुए स्थिति को बनाए रखें। यह मुद्रा कोर, बांहों, कंधों और कलाइयों को मजबूत बनाती है और सहनशक्ति का निर्माण करती है।

5.चेयर पोज़ (उत्कटासन): पैरों को एक साथ रखकर खड़े होकर शुरुआत करें। सांस लेते हुए हाथों को ऊपर उठाएं, हथेलियां एक-दूसरे के सामने हों। सांस छोड़ते हुए घुटनों को मोड़ें और कूल्हों को नीचे लाएं जैसे कि कुर्सी पर पीछे बैठे हों। छाती को ऊपर उठाकर रखें और आगे की ओर देखें। जांघों को जोड़ते हुए और एड़ियों पर वजन रखते हुए मुद्रा को बनाए रखें। यह मुद्रा पैरों, कोर और पीठ को मजबूत बनाती है और शरीर में गर्मी पैदा करती है।

6.कबूतर मुद्रा (एका पाद राजकपोटासन): टेबलटॉप स्थिति में शुरू करें, फिर एक घुटने को उसी कलाई की ओर और टखने को विपरीत कलाई की ओर आगे लाएं। विपरीत पैर को पीछे की ओर फैलाएं, कूल्हों को फर्श की ओर नीचे करें। कूल्हों को चौकोर करें और हाथों को सामने के पैर के ऊपर मोड़ते हुए आगे की ओर चलें। रीढ़ की हड्डी को लंबा रखें और कूल्हे के खिंचाव में गहरी सांस लें। यह मुद्रा कूल्हों और कमर में तनाव को दूर करती है और आराम को बढ़ावा देती है।

7.माउंटेन पोज़ (ताड़ासन): पैरों के चारों कोनों को जमीन पर रखते हुए पैरों को एक साथ रखकर सीधे खड़े हो जाएं। जाँघों को जोड़ें, रीढ़ की हड्डी को लंबा करें और कंधों को पीछे की ओर घुमाएँ। हथेलियाँ आगे की ओर रखते हुए भुजाएँ बगल में शिथिल हैं। यह मुद्रा मुद्रा में सुधार करती है और ग्राउंडिंग को बढ़ावा देती है।

8.अधोमुख श्वानासन (अधो मुख श्वानासन): हाथों और घुटनों से शुरू करें, फिर कूल्हों को छत की ओर उठाएं, जिससे शरीर के साथ उल्टा वी-आकार बने। हाथ कंधे की चौड़ाई से अलग हों, पैर कूल्हे की चौड़ाई से अलग हों। हथेलियों को चटाई में दबाएं, रीढ़ को लंबा करें और एड़ियों को फर्श की ओर धकेलें। यह मुद्रा पूरे शरीर को फैलाती है, हाथ-पैरों को मजबूत बनाती है और मन को शांत करती है।

9.योद्धा I (वीरभद्रासन I): एक पैर आगे की ओर लंज स्थिति में रखें, पिछला पैर 45 डिग्री के कोण पर हो। पिछला पैर सीधा रखते हुए सामने के घुटने को टखने के ऊपर मोड़ें। कूल्हों को चटाई के सामने की ओर सीधा रखें और बाजुओं को ऊपर उठाएं, हथेलियाँ एक-दूसरे के सामने हों। यह मुद्रा पैरों में ताकत पैदा करती है, कूल्हों और छाती को फैलाती है और ध्यान और दृढ़ संकल्प पैदा करती है।

10.वृक्ष मुद्रा (वृक्षासन): पैरों को एक साथ रखकर सीधे खड़े हो जाएं, फिर वजन को एक पैर पर डालें। दूसरे पैर के तलवे को घुटने से बचाते हुए भीतरी जांघ या पिंडली पर रखें। हाथों को हृदय केंद्र पर लाएँ या बाहों को ऊपर की ओर फैलाएँ। मूल को संलग्न करें और संतुलन में सहायता के लिए एक केंद्र बिंदु ढूंढें। यह मुद्रा संतुलन में सुधार करती है, पैरों को मजबूत बनाती है और एकाग्रता को बढ़ावा देती है।

11.बाल मुद्रा (बालासन): हाथों और घुटनों से शुरुआत करें, फिर घुटनों को चौड़ा करके एड़ियों के बल बैठें। माथे को चटाई पर झुकाएं, भुजाएं सामने की ओर फैली हुई हों या बगल में आराम कर रही हों। पूरे शरीर को आराम दें और पीठ से गहरी सांस लें। यह मुद्रा पीठ, कंधों और कूल्हों में तनाव को दूर करती है और शांति और विश्राम की भावना प्रदान करती है।

12.शव मुद्रा (सवासना): पीठ के बल सीधे लेट जाएं और हाथ-पैर फैलाकर हथेलियां ऊपर की ओर रखें। आंखें बंद करें और पूरे शरीर को आराम दें, जिससे मांसपेशियां नरम हो जाएं और तनाव दूर हो जाए। सांस पर ध्यान केंद्रित करें और कई मिनटों तक स्थिर रहें। यह मुद्रा गहन विश्राम को बढ़ावा देती है, तनाव कम करती है और योग अभ्यास के लाभों को एकीकृत करती है।

13.ब्रिज पोज़ (सेतु बंधासन): घुटनों को मोड़कर और पैरों को फर्श पर, कूल्हों की चौड़ाई के बराबर दूरी पर रखते हुए अपनी पीठ के बल लेटें। कूल्हों को छत की ओर उठाते हुए पैरों पर दबाव डालें। पीठ के नीचे अंगुलियों को फंसाएं और कंधों को नीचे घुमाएं। जांघों को समानांतर रखें और ग्लूट्स को संलग्न करें। यह मुद्रा छाती, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को फैलाती है, साथ ही पीठ, ग्लूट्स और हैमस्ट्रिंग को भी मजबूत करती है।

14.योद्धा II (वीरभद्रासन II): खड़े होने की स्थिति से, एक पैर लगभग 3-4 फीट पीछे ले जाएं, सामने वाला पैर आगे की ओर हो और पिछला पैर चटाई के छोटे किनारे के समानांतर हो। पिछला पैर सीधा रखते हुए सामने के घुटने को सीधे टखने के ऊपर मोड़ें। भुजाओं को फर्श के समानांतर फैलाएँ, सामने वाला हाथ आगे की ओर और पिछला हाथ पीछे की ओर रहे। सामने की उंगलियों पर नजर डालें। यह मुद्रा पैरों में ताकत पैदा करती है, कूल्हों को खोलती है और फोकस और एकाग्रता में सुधार करती है।

15.विस्तारित त्रिकोण मुद्रा (उत्थिता त्रिकोणासन): वारियर II से, सामने के पैर को सीधा करें और सामने वाले हाथ को आगे की ओर ले जाएं, फिर कूल्हे पर टिकाएं और सामने वाले हाथ को पिंडली, टखने या फर्श पर नीचे लाएं। पिछली बांह को छत की ओर बढ़ाएं, उंगलियों से उंगलियों तक एक सीधी रेखा बनाएं। छाती खुली और धड़ लम्बा रखें। यह मुद्रा हैमस्ट्रिंग, कूल्हों और पार्श्व शरीर को फैलाती है, साथ ही पैरों और कोर को भी मजबूत करती है।

16.कैट-काउ पोज़ (मार्जरीआसन-बिटिलासन): हाथों और घुटनों से शुरू करें, कलाइयों को कंधों के नीचे और घुटनों को कूल्हों के नीचे रखें। श्वास लेते हुए पीठ को झुकाएं, पेट को नीचे की ओर झुकाएं और छाती को ऊपर उठाकर देखें (गाय मुद्रा)। रीढ़ को गोल करने के लिए सांस छोड़ें, ठुड्डी को छाती से लगाएं और नाभि को रीढ़ की ओर खींचें (कैट पोज़)। प्रत्येक सांस के साथ इन दोनों मुद्राओं के बीच प्रवाहित करें। यह क्रम रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन में सुधार करता है, पीठ में तनाव दूर करता है और आंतरिक अंगों की मालिश करता है।

17.सीटेड स्पाइनल ट्विस्ट (अर्ध मत्स्येन्द्रासन): पैरों को सामने फैलाकर फर्श पर बैठें। एक घुटने को मोड़ें और पैर को विपरीत जांघ के ऊपर से पार करें, पैर को फर्श पर सपाट रखें। रीढ़ को लंबा करने के लिए श्वास लें, फिर मुड़े हुए घुटने की ओर मुड़ने के लिए श्वास छोड़ें, विपरीत कोहनी को घुटने के बाहर रखें और दूसरे हाथ को पीठ के पीछे फर्श पर रखें। दोनों बैठने की हड्डियों को जमीन पर रखें और छाती को ऊपर उठाएं। यह मुद्रा रीढ़, कंधों और कूल्हों को फैलाती है, साथ ही पाचन और विषहरण को भी उत्तेजित करती है।

18.आगे की ओर झुककर खड़े होना (उत्तानासन): पैरों को कूल्हे की चौड़ाई के बराबर फैलाकर सीधे खड़े हो जाएं। रीढ़ को लंबा करने के लिए श्वास लें, फिर कूल्हों पर टिकाने के लिए श्वास छोड़ें और हाथों या उंगलियों से फर्श की ओर पहुंचते हुए आगे की ओर झुकें। यदि आवश्यक हो तो पीठ को सपाट बनाए रखने के लिए घुटनों को थोड़ा मोड़ें। सिर और गर्दन को आराम दें और गुरुत्वाकर्षण को आपको खिंचाव में और गहराई तक खींचने दें। यह मुद्रा रीढ़, हैमस्ट्रिंग और पिंडलियों में तनाव को दूर करती है और मन को शांत करती है।

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